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देश में 7 से 18 फीसदी आबादी के गठिया या मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों से ग्रस्त होने का अनुमान है, लेकिन देश में गठिया जैसी बीमारी के इलाज की बेहद कम सुविधाएं उपलब्ध हैं क्योंकि पूरे  देश में रूमैटॉलॉजिस्ट की पोस्ट ग्रेजुएट सीटें बहुत कम होने के कारण सम्पूर्ण देश के कुछ ही अस्पतालों में रूमैटॉलजी विभाग है। 

आर्थराइटिस:गठिया 

एक अध्ययन के मुताबिक 1999-2010 के बीच मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द से जुड़ी बीमारियों में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है। शोध बताते हैं कि भविष्य में मानसिक रोगों के बाद मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द की बीमारी दूसरी सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या होगी। समय पर सही जांच व उपचार का मिलना ही इसका समुचित समाधान हो सकता है।

प्रदूषण बड़ा कारक

इसके लिए पर्यावरण से जुड़े कारण सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं। अध्ययन बताते हैं कि जहां प्रदूषण की समस्या ज्यादा गंभीर है, वहां गठिया ज्यादा हो रहा है। आर्थ्राइटिस आंतों में संक्रमण की वजह से भी होता है, जिसकी वजह दूषित खान-पान हो सकता है।

गठिया को लेकर हमने एम्स की ओपीडी में आने वाले 300 मरीजों के आंकड़े जुटाए हैं। आरंभिक जांच में यह पाया गया कि जब दिल्ली में पीएम-2.5 की मात्रा हवा में ज्यादा पाई गई, तब गठिया के रोगी ज्यादा सामने आए। ऐसे मरीजों के आंकड़े एकत्र किए गए, जिससे यह बात सामने आती है कि जब हवा में पीएम-2.5 ज्यादा मात्रा में घुल जाते हैं तो यह सांस लेने के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। रक्त के साथ ये शरीर के सभी अंगों में पहुंचते हैं। इसी प्रक्रिया में पीएम-2.5 की मात्रा जोड़ों के ईद-गिर्द कोशिकाओं में रक्त एवं ऑक्सीजन के प्रवाह को बाधित करती है। 

जरूरी है कि सही जांच करवाने के बाद ही समुचित उपचार के लिए आगे बढ़ें अन्यथा बीमारी का गलत इलाज ज्यादा घातक हो सकता है।

मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द की शिकायत आज आम बात हो गई है। शहरों में यह स्थिति ज्यादा गंभीर है, जहां शारीरिक गतिविधियां लोगों में कम हैं। इसलिए सही जांच जरूरी है। इसके लिए हड्डी रोग विशेषज्ञ की बजाय गठिया रोग विशेषज्ञ के पास जाएं। दूसरे बिना जांच के गठिया या आर्थ्राइटिस की दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे दवाओं के दुष्प्रभाव हो सकते हैं। स्टेरॉइड वाली दवाओं का तो सेवन कतई नहीं किया जाना चाहिए। 

सिर्फ जांच ही काफी नहीं अकसर यह देखा गया है कि लोग ईएसआर, सीआरपी जैसे टैस्ट पॉजिटिव निकलने पर उसे गठिया मान लेते हैं। यह सही नहीं है। यह शरीर में सिर्फ सूजन व संक्रमण  दर्शाते हैं। यह हमेशा गठिया का पैमाना नहीं होता। इसी प्रकार रूमैटाइड फैक्टर (आरएफ) एंटी न्यूक्लियर एंटीबॉडीज (एएनए) के पॉजिटिव निकलने का मतलब भी गठिया संक्रमण जरूरी नहीं है। पांच फीसदी स्वस्थ लोगों में भी यह टैस्ट पॉजिटिव निकलते हैं।

 

'कुछ तथ्य' यह नवजात शिशुओं से लेकर वृद्धों में पाया जाता है। मां से बच्चे में भी आ सकता है। ' स्त्रियां अधिक शिकार हैं। ताजा शोध बताते हैं कि युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।

'ऑस्टियोआर्थ्राइटिस सबसे अधिक पाया जाने वाला गठिया है। गठिया होने पर रूमैटॉलॉजिस्ट से सलाह लें, हड्डी रोग विशेषज्ञ से नहीं। यह दवा से ठीक होने वाली बीमारी है, न कि शल्य क्रिया से। 

अनियमित जीवनशैली 

नए अध्ययन संकेत दे रहे हैं कि जीवनशैली भी इस बीमारी को बढ़ा रही है। ज्यादा खाने-पीने के कारण मोटापे की चपेट में आने, एक स्थिति में ज्यादा देर तक बैठे रहने, कंप्यूटर पर लंबे समय तक कार्य करने, कंधे व गर्दन के बीच मोबाइल दबा कर लंबे समय तक बात करने जैसी स्थितियों से भी मांसपेशियों एवं जोड़ों का दर्द होता है। हालांकि यह गठिया नहीं है, लेकिन इसके प्रभाव गठिया जैसे ही महसूस होते हैं। दूसरे ज्यादा उम्र वालों में ही नहीं, बच्चों व जवानों में भी गठिया हो रहा है। 

 

देश में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां मधुमेह, रक्तचाप, दिल के रोग आदि बढ़ रहे हैं, लेकिन एक और बीमारी है, जो तेजी से अपने पैर पसार रही है। खेद की बात यह है कि इसकी ओर नीति-निर्माताओं का ध्यान भी कम है। यह रोग है मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द से जुड़ा गठिया या आर्थ्राइटिस।


इसमें मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, सूजन, लालिमा पैदा होती है। इसके रोगी को उठने-बैठने, चलने-फिरने, झुकने या किसी खास किस्म का कार्य करने में तकलीफ होती है। इसे रूमैटिज्म या गठिया कहते हैं। गठिया की बीमारी करीब दो सौ किस्म की होती है। कई बार कई किस्म के बुखार या कभी-कभी मांसपेशियों के दबने या उन पर दबाव पड़ने की वजह से भी मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है। मोटे तौर पर यदि सुबह उठने के बाद आधे घंटे के भीतर शरीर की जकड़न दूर नहीं हो रही है तो यह गठिया के लक्षण हो सकते हैं।

क्यों बढ़ रहा है गठिया रोग?
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योग साधना केंद्र, इंदिरानगर, लखनऊ

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विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा किए बगैर कसरत या डाइटिंग मत आजमाइएगा। ब्रिटेन की एक मशहूर फिटनेस फर्म ने एक हजार ब्रिटिश लोगों पर अध्ययन के बाद यह सलाह दी है। शोधकर्ताओं के मुताबिक 80 फीसदी से ज्यादा लोग खुद के लिए सही डाइट नहीं तय कर पाते हैं। वे शक्कर और फैट के साथ-साथ कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार से भी परहेज करने लगते हैं, जिससे सिरदर्द, कमजोरी, मिचली और हड्डियों-मांसपेशियों में क्षरण की शिकायत हो सकती है। 77 फीसदी लोग बिना ट्रेनिंग के एक्सरसाइज शुरू कर देते हैं। इससे उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि संबंधित व्यायाम उनके लिए कितना कारगर है और इसे किस तरह से करना चाहिए। अंत में जब मनमुताबिक फायदा नहीं मिलता है तो वे शरीर की बनावट को कोसने लगते हैं।

योग है जरूरी

योग न सिर्फ हमें स्वस्थ रखता है, बल्कि कई रोगों से छुटकारा पाने में भी सहायता करता है। सूर्य नमस्कार, कपालभाति, नाड़ीशोधन जैसे आसन, प्राणायाम और मृत्यु संजीवनी जैसी कुछ आसान मुद्राएं अवश्य करें।

विशेषज्ञों की सलाह है ज़रूरी 

योगासन और प्राणायाम से कीजिए

(जोड़ों और मांसपेशियों का दर्द)

सूक्ष्म व्यायाम  भी है महत्वपूर्ण 

गठिया रोग व उसके दर्द से निजात पाने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि सुबह व शाम, प्राणायाम के साथ-साथ हाँथ, पैर व गर्दन से सम्बंधित सूक्ष्म व्यायाम को नियमित रूप से किया जाय तथा संतुलित आहार को अपनी पसंदीदा आदत में शुमार कर लिया जाए |

गठिया रोग का सफाया  

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