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विटामिन डी की कमी एक गंभीर समस्या, क्या हैं बचाव के उपाय? 

आज की जीवनशैली में विटामिन डी की कमी आम बात हो गई है, लेकिन यह ऐसी समस्या नहीं है, जिसे हल्के में लिया जाए। विटामिन डी की कमी से शरीर की कई चीजें बुरी तरह प्रभावित होती हैं और सेहत पर उसका नुकसान दिखने लगता है। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि इस समस्या को सही रूप में जाने तथा इससे बचाव के लिए पूर्ण  सावधानी बरतें।

पिछले साल हुए एक अध्ययन के अनुसार 70 फीसदी से अधिक भारतीयों में विटामिन डी की कमी पाई गई। इस अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ है कि विटामिन डी की कमी शहरी और ग्रामीण इलाकों के सभी सामाजिक वर्गों में पाई गई।

विशेषज्ञ मानते हैं कि विटामिन डी के लक्षण एकदम उभर कर सामने नहीं आते, इसी वजह से लोगों को समय पर विटामिन डी की कमी से होने वाले रोगों का पता ही नहीं चल पाता। इसलिए विटामिन डी की नियमित जांच और विटामिन डी युक्त भोजन लेना महत्वपूर्ण है।

नई दिल्ली स्थित ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के सेंटर फॉर कम्युनिटी मेडिसिन के एडिशनल प्रोफेसर डॉं संजय के. राय के अनुसार, ‘गौर करने वाली बात यह है कि ज्यादातर भारतीयों को न सिर्फ विटामिन डी की कमी के बारे में अपर्याप्त जानकारी है, बल्कि वे यह भी नहीं जानते कि विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं के सामान्य तरीके से काम करने में इसकी भूमिका क्या है। लोगों को ये समझाना जरूरी है कि शुरुआत में विटामिन डी की कमी के कोई लक्षण नजर नहीं आते, इसलिए इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है।

जाने, क्या है विटामिन डी ? 

विटामिन डी प्रो हार्मोन का समूह है, जो सूरज की रोशनी, खानपान और विभिन्न सप्लिमेंट्स से मिलता है। ये विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से शरीर को सक्रिय रखता है। शरीर में विटामिन डी की मात्रा को कैल्सीट्राइयोल से मापा जा सकता है, जो शरीर में सक्रिय रूप में मौजूद होती है। विटामिन डी शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों को ठीक तरह से संचालित करने में मदद करता है और यह कैल्शियम को शरीर में संतुलित करने और हड्डियों की सेहत के लिए महत्वपूर्ण है। विटामिन डी, इम्यूनिटी, ऑटो इम्यूनिटी का बढ़ना, मायोपेथी, डायबिटीज मैलीटिस और कोलन, स्तन व प्रोस्टेट कैंसर जैसे कई गंभीर विकारों से बचाव करता है।

रिस्क फैक्टर

उम्र, नस्ल, मोटापा, किडनी संबंधी बीमारी, लिवर की बीमारी, क्रोहिन बीमारी, कायस्टिक फिबरोसिस और सिलियक बीमारी। 

एड्स/एचआईवी से जुड़ी दवाइयां लेने पर भी विटामिन डी की कमी हो सकती है।

विटामिन डी और डायबिटीज का संबंध 
हमारे देश में डायबिटीज होने के कई कारक हैं, जिनमें आनुवंशिक और पर्यावरण कारणों के अलावा मोटापा भी शामिल है। यह अस्वस्थ जीवनशैली, लगातार शहरीकरण और अस्वस्थ खान-पान से सीधे तौर पर जुडम हुआ है। कई कारण ऐसे भी होते हैं, जिनके बारे में लोग कम जानते हैं। इनकी वजह से डायबिटीज के मामलों में भी लगातार इजाफा हो रहा है। कई वैज्ञानिक आधार मिलने के बावजूद कई बार हेल्थकेयर से जुड़े प्रोफेशनल्स डायबिटीज के कारणों को जानने या लंबी अवधि के लिए इन्हें मैनेज करने के दौरान विटामिन डी के रिस्क फैक्टर को नजरअंदाज कर देते हैं। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि सूरज की रोशनी से त्वचा में विटामिन डी3 बनता है, जो डायबिटीज जैसी बीमारियों को रोकने में कारगर है। विटामिन डी की कमी इंसुलिन की क्रियाशीलता को भी प्रभावित करती है, जिससे टाइप 2 डायबिटीज  की आशंका हो सकती है।

दिल की सेहत से संबंध 
विशेषज्ञों के अनुसार कई रोगियों को अचानक दिल का दौरा पड़ता है। हाल के अध्ययनों से सामने आया है कि विटामिन डी की कमी से दिल संबंधी बीमारियां होने का भी खतरा है। जो लोग ज्यादा रिस्क पर हैं, उन्हें नियमित रूप से विटामिन डी का टेस्ट कराना चाहिए, ताकि समय रहते बीमारी का पता चल सके।

बच्चों के लिए अधिक खतरनाक
गर्भावस्था में महिलाओं को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी लेना चाहिए। इसकी कमी से शिशुओं को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और इससे उनकी पसलियां कमजोर हो सकती हैं। विटामिन डी की गंभीर कमी बच्चों के सिर की खोपड़ी या पैरों की हड्डियों पर भी असर डालती है।

किडनी पर असर 
विटामिन डी की कमी किडनी पर भी प्रभाव डालती है, इसलिए जरूरी है कि अभिभावक बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें और विटामिन डी युक्त भोजन व इससे जुड़े सप्लिमेंट उनके खानपान में शामिल करें।

विटामिन डी के स्त्रोत
सूरज की रोशनी
दूध या दूध से बने उत्पाद
अंडे
सी-फूड यानी विभिन्न प्रकार की मछलियां
विटामिन डी के सप्लीमेंट
फोर्टीफाइड विटामिन डी उत्पाद

​विटामिन डी की कमी के कारण

विटामिन डी का नाम आते ही सूरज की रोशनी याद आती है। हम अकसर आश्वस्त रहते हैं कि विटामिन डी तो शरीर को मिल ही रहा है और यह सत्य भी है। हमें विटामिन डी की जितनी जरूरत होती है, उसकी कम से कम 75 प्रतिशत पूर्ति सूरज की सीधी रोशनी से होती है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, सूरज की रोशनी में कम जाने, सनस्क्रीन लगाने और अस्वस्थ खान-पान की वजह से भारतीयों में विटामिन डी की कमी होती जा रही है। अस्वस्थ खान-पान और जंक फूड खाने के चलते होने वाला मोटापा भी विटामिन डी की कमी होने का प्रमुख कारण हो सकता है, क्योंकि रक्त में मौजूद फैट कोशिकाएं विटामिन डी को अवशोषित कर लेती हैं और शरीर को बाकी जरूरी काम के लिए विटामिन डी नहीं मिल पाता। जीवनशैली में बदलाव, लोगों का डेस्क जॉब करना और धूप में निकलते समय खुद को स्कार्फ या कपड़े इत्यादि से ढक कर निकलना भी इसकी कमी का प्रमुख कारण है।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने रोजाना 400 आईयू विटामिन डी लेने की सलाह दी है। हमें रोजाना खून के संचार, मांसपेशियों की गतिविधियों, दिल संबंधी काम और संक्रमणों व बीमारियों से बचने के लिए प्रतिरोधक क्षमता दुरुस्त रखने के लिए विटामिन डी की जरूरत होती है। विटामिन डी से युक्त भारतीय डाइट सिर्फ रोजाना की जरूरत का 10 प्रतिशत ही पूरा कर पाती है।

होमोस्यास्टिन: बेहतरीन बायोमार्कर
रक्त में होमोस्यास्टिन के स्तर को मापने से शरीर की हड्डियों की सेहत के बारे में जानकारी मिल जाती है। उस समय हड्डियों की क्षति रोकने की दिशा में कोलेजन नेटवर्क को मजबूत और स्थिर रखने के लिए ये जरूरी है।

रोकथाम, ​कैसे करें ? 

विटामिन डी के लिए कम से कम 30 मिनट धूप में बैठें।
सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर तीन बजे तक धूप का मजा लेना चाहिए।
जिनकी त्वचा गोरी है, उन्हें हफ्ते में 2-3 बार और जिनकी डार्क है, उन्हें हफ्ते में 3-6 बार सूर्य की रोशनी में बैठना चाहिए। 
शाकाहारी महिलाओं के लिए फोर्टीफाइड फूड या फिर सप्लीमेंट जरूरी है। समय-समय पर विटामिन डी की जांच कराएं। 
गर्मियों में दोपहर से पहले यूवी बी किरणें ज्यादा होती हैं, उस समय धूप का आनंद लिया जा सकता है।
महिलाओं को मोटापा कम करने पर जोर देना चाहिए, क्योंकि रक्त में मौजूद विटामिन डी को फैट कोशिकाएं अवशोषित कर लेती हैं, जिससे विटामिन डी की कमी पूरी होना असंभव हो जाता है।

YOG    SADHANA    KENDRA

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